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मरे नहीं हैं मंटो

वाया बीजिंग
वाया बीजिंग
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सआदत हसन मंटो के बारे में कुछ भी लिखना कम होगा। पिछली बार लाहौर यात्रा में उनके निवास लक्ष्‍मी मैंशन की खोज अधूरी रही थी। हां,उनके चौराहे के अनारकली ज्‍यूस सेंटर से हो आए थे। ऐसा नहीं लगा कि पाकिस्‍तान उनके नाम पर गर्व करता है। वैसे अपने यहां भी कौन प्रेमचंद का डंका पीटता है।साथ में कुछ कहानियां भी हैं

54 साल पहले सिर्फ 42 की उम्र में सआदत हसन मंटो का निधन हो गया। लंबे समय तक वे भारत-पाकिस्‍तान दोनों देशों में विस्‍मृति के कब्र में लेटे रहे। अचानक पिछली सदी के अंतिम दशक में उनके कुछ मुरीदों ने उन्‍हें जिंदा कर दिया। मिट्टी हटाई और फिर से सभी के सामने खड़ा कर दिया। देश जिस माहौल से गुजर रहा था, उसमें लोगों को मंटो की याद आई। मंटो रहते तो क्‍या करते?
मंटो रहते तो नि‍श्चित ही नए परिप्रेक्ष्‍य में ‘बू’, ‘खोल दो’ और ‘ठंडा गोश्‍त’ लिखते। जाहिर है कि वे पाकिस्‍तान नहीं गए होते तो मुंबई में ही रहते। दस-बारह फिल्‍में लिख चुके होते और गुलजार एवं जावेद अख्‍तर से ज्‍यादा नामचीन होते। हां, अपनी कहानियों की धार से वे दंगाइयों और कट्टरपंथियों के अहं को जख्‍मी करते और बहुत मुमकिन है कि 1992 में हुए मुंबई के बम धमाकों में उनके परखचे उड़ गए होते। किसी कट्टरपंथी के खंजर, रिवॉल्‍वर या हथौड़े के निशाने पर आ गए होते। मंटो को मरना ही था।
सआदत हसन मंटो में गजब का जज्‍बा था। जिन दिनों वे लिख रहे थे, उन दिनों उन पर अश्‍लीलता का भी आरोप लगा। आज कमीने, कमबख्‍त और चूतिए जैसे शब्‍द फिल्‍मों की वजह प्रचलित और समाज में स्‍वीकृत हो गए हैं। उन्‍होंने अपनी कहानियों के लिए एक ऐसी भाषा चुनी थी जो ठंडे लोहे की सर्द और नंगी थी। सीधे दिल में आकर चुभती थी और ओढ़ी भावनाओं को छलनी कर देती थी। आज भी मौका मिले तो उनकी कहानियां पढ़ें। फिल्‍म स्‍टारों पर लिखे उनके संस्‍मरण पढ़ें। वे निडर और बेहिचक भाव से लिखते थे। किसी की कमजोरियों को छिपाना लिहाज नहीं है। मंटो ने हमेशा समाज की कुरीतियों को निशाना बनाया।
मंटो की दुविधा रही कि वे पाकिस्‍तान में भारतीय लेखक और भारत में पाकिस्‍तानी लेखक माने जाते रहे। आजादी के आगे-पीछे उन पर अश्‍लीलता के छह मुकदमे चले। उन्‍हें जेल में भी रहना पड़ा। पाकिस्‍तान ने मंटो पर ध्‍यान नहीं दिया। वे मुफलिसी में देसी शराब पीने लगे थे। उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि घर-परिवार पर ध्‍यान दे सकें। उन्‍हें लाहौर पहुंच कर मुंबई की याद आती रही। लाहौर में बिताए आखिरी सात साल भारी मुसीबत के दिन थे, लेकिन इन्‍हीं दिनों में उनकी कलम ने सच उगलने का काम किया। ऐसा सच… जो सत्ता के लिए तकलीफदेह था।

आज ही के दिन 1955 में लाहौर में उनका इंतकाल हुआ था। मुंबई में कुछ फिल्‍मकार उनकी जिंदगी को सेल्‍युलाइड पर उतारने की कोशिश में हैं और एक्‍टर इरफान खान उनकी भूमिका निभाना चाहते हैं। देखें, क‍ब ऐसा होता है?

बेख़बरी का फ़ायदा
लबलबी दबी – पिस्तौल से झुँझलाकर गोली बाहर निकली.
खिड़की में से बाहर झाँकनेवाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया.
लबलबी थोड़ी देर बाद फ़िर दबी – दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली.
सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में हल होकर बहने लगा.
लबलबी तीसरी बार दबी – निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज़्ब हो गई.
चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख़ भी न सकी और वहीं ढेर हो गई.
पाँचवी और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ और न ज़ख़्मी.
गोलियाँ चलाने वाला भिन्ना गया.
दफ़्तन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया.
गोलियाँ चलानेवाले ने पिस्तौल का मुहँ उसकी तरफ़ मोड़ा.
उसके साथी ने कहा : “यह क्या करते हो?”
गोलियां चलानेवाले ने पूछा : “क्यों?”
“गोलियां तो ख़त्म हो चुकी हैं!”
“तुम ख़ामोश रहो….इतने-से बच्चे को क्या मालूम?”

करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,
कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन वह चंद घंटो के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.

ख़बरदार
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटकर बाहर लाए.
कपड़े झाड़कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा :
“तुम मुझे मार डालो, लेकिन ख़बरदार, जो मेरे रुपए-पैसे को हाथ लगाया………!”

हलाल और झटका
“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया.”
“यह तुमने क्या किया?”
“क्यों?”
“इसको हलाल क्यों किया?”
“मज़ा आता है इस तरह.”
“मज़ा आता है के बच्चे…..तुझे झटका करना चाहिए था….इस तरह. ”
और हलाल करनेवाले की गर्दन का झटका हो गया.
(शहरग – शरीर की सबसे बड़ी शिरा जो हृदय में मिलती है)

घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और बयालीस रुपये देकर उसे ख़रीद लिया.
रात गुज़ारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा : “तुम्हारा नाम क्या है? ”
लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया : “हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो….!”
लड़की ने जवाब दिया : “उसने झूठ बोला था!”
यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा : “उस हरामज़ादे ने हमारे साथ धोखा किया है…..हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी……चलो, वापस कर आएँ…..!”

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