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जोधपुर की मावा कचौरी

वाया बीजिंग
वाया बीजिंग
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mawa पिछले दिनों हेमा मालिनी की प्रोडक्शन कंपनी की फिल्‍म ‘टेल मी ओ खुदा’ की शूटिंग कवरेज और फिल्म के कलाकारों से बातचीत के सिलसिले में जोधपुर जाने का मौका मिला। राजस्थान ने अपने राजसी अतीत का पर्यटन उद्योग में सुंदर निवेश किया है। राजाओं ने स्थायी आमदनी के लिए अपने महलों को होटल का रूप दे दिया है। उमेद भवन की विशालता और रौनक दूर से ही आकर्षित करती है। 125 फीट की ऊंचाई पर स्थित मेहरानगढ़ किले से जोधपुर का विहंगम दृश्य तो अद्भुत है। ‘टेल मी ओ खुदा’ की शूटिंग बाल समंद में चल रही थी। निर्देशक मयूर पुरी किले की खूबसूरती का सुंदर उपयोग कर रहे हैं। उन्‍होंने बड़ी अच्‍छी उल्‍लेखनीय बात कही कि अगर लोकेशन वास्तविक हो तो विश्वसनीयता बढ़ जाती है। सेट से भ्रम नहीं पैदा करवाना पड़ता है।
जागरण के परिशष्टों ‘तरंग’, ‘झंकार’ और ‘सप्तरंग’ में आप भविष्य में इस फिल्म से संबंधित रोचक जानकारियां और बातें पढ़ेंगे। यहां हम स्वादिष्ट विषयांतर कर रहे हैं। खाने-पीने के अपने शौक की वजह से मेरी कोशिश रहती है कि हर शहर के पारंपरिक और स्वादिष्ट व्यंजनों को चखा जाए और उनके स्वाद से परिचित हुआ जाए। जोधपुर के बारे में कहा जाता है कि कुछ मिठाइयां और पेय केवल यहीं मिलते हैं। अगर आप जोधपुर गए हैं और केवल होटलों के रेस्तरां में खा-पी रहे हैं तो निश्चित ही इन स्वादों से आप वंचित रह जाएंगे। पता नहीं क्यों होटल और रेस्तरां स्थानीय स्वादों और व्यंजनों को अपने मेन्यू में शामिल नहीं करते।
बहरहाल, मैं यहां जोधपुर के मशहूर व्यंजन और स्वादों में दालबाटी चूरमा, मखनिया लस्सी, मावा कचौरी, लपसी, मिर्च बड़ा, प्याज कचौरी का उल्लेख करूंगा। आप जोधपुर में हो तो समय निकाल कर और भूख बचाकर इन्हें चखें। आप जोधपुर की गलियों, बाजारों और सडक़ किनारे के छोटे रेस्तरां में इन्हें चख सकते हैं। मजेदार है कि स्थानीय निवासी आज भी इनका भरपूर आनंद उठाते हैं। मैं घंटाघर में घूम रहा था। वहां अचानक सूझा कि मावा कचौरी ली जानी चाहिए। इससे बेहतर और स्वादिष्ट सौगात की होगी। एक जलपान गृह के सलिक ने बताया कि घंटाघर के मेन गेट के बगल में छोटा गेट है। वहां मावा कचौरी मिल जाएगी। छोटे शहरों के दुकानदारों और बैरों में एक अलग सुस्त नफासत रहती है। मैंने छह मावा कचौरी पैक करने को कहा और उन्हें पैक करने में पूरे 20 मिनट लगे। पैकिंग में भी इतना प्यार और नजाकत… मैंने जल्दी-जल्दी मचायी तो भी कोई हड़बड़ी नहीं। उन्होंने बड़े प्यार और यत्न से पैक किया और मावा कचौरी खाने का तरीका बताया। नमकीन कचौरी में भरा मावा और उसे चाशनी के साथ खाने की कल्पना मात्र से ही मन मीठा हो गया था।
कहते हैं रावत मिष्‍ठान भंडार ने मावा कचौरी ईजाद की थी। अभी तो यह जोधपुर की खासियत है। जयपुर तक में यह मिलने लगी है। मावा कचौरी का स्वाद में अनोखी मिठास है, जिसमें मसालों और मेवा का मिश्रण है। अगर आप खाना खाने के साथ उन्हें बनाने की भी शौकीन हैं तो लगे हाथ मावा कचौरी बनाने की विधि भी पढ़ लें। जोधपुर की यह मिठास आप के घर आ जाएगी।

मावा कचौरी

सामग्री

मैदा – एक कप
मावा – आधा कप
घी या तेल तलने के लिए
बादाम और पिस्ता कतरे हुए
इलायची पाउडर
दालचीनी पाउडर
केसर
चुटकी भर नमक
चाशनी के लिए एक कप शक्कर और एक कप पानी।

विधि
मैदा में चुटकी भर नमक मिला कर गूंथ लें। मैदे को को कसा हुआ गूंथे और उसकी दस लोइयां बना लें और उन्हें मलमल के गीले कपड़े से ढक दें।
मावा में मेवा और मसाले मिलाकर अच्छा मिश्रण तैयार करें। देखें ले कि मावे का ढेला न रह जाए।
लगभग तीन इंच के व्यास में लोई बेलें और उसमें दो चम्मच मावे का मिश्रण करें। पांचो उंगलियों से बेली हुई लोई को अंदर की तरफ मोड़ें और चिपका दें। फिर हथेली में उंगलियों से थपथपा कर लोई को फैलाएं। उन्हें गर्म तेल या घी में अच्छी तरह तलें। बाहर निकालने के बाद उन्हें ठंडा होने दें।
अब पानी और शक्कर मिलाकर दो तार की चाशनी तैयार करें। खाते समय कचौरी के बीच में छेद करें और दो चम्मच चाशनी डाल दें। कचौरी के अंदर का मावा उसे सोख लेगा। थोड़ी चाशनी कचौरी के ऊपर डालें। पूरी कचौरी खाने की हिम्मत नहीं हो रही हो तो उसे तोड़ लें और मिल-बांट कर खाएं। मिठास और कैलोरी की चिंता में इस स्वादिष्ट आनंद से वंचित न रहें। मैं खुद डायबीटिक हूं,लेकिन …. mawa

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